|
|
s;]t;;e{; v; n;It;; n;;b;r |
|
|
|
|
joshi117
|
15 Dec : 17:48
|
Comments: 2
Registered: 17 Nov : 02:47
|
स्वरचित चारोळ्या घ्या
आणि अंतराळाचे श्रीखंड सजवा!
विजय जोशी "शब्द्नाद"
भावनेचे पूर आले
डोळ्यातून पाणी सांडले
आनंदाचे का दुख्खाचे
अश्रूच च जाणे!
----------------------------------------
समुद्राच्या लाटा
कोरड्या मातीत
आंग कोरडं करायला
काठाशी आल्या!
-------------------------------------
नशीब हा असा जुगार
ज्यात जिंकता येत नाही
पत्ते पाहता येत नाही
न पाहता खेळता येत नाही
|
|
|
You must be logged in to post comments on this site - please either log in or if you are not registered click here to signup | |